शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

उड़ान


अनजाना सपनों में कोई
अच्छा लगता है
अपनों में वो बेगाना भी
अच्छा लगता है।

अनदेखा है फ़िर भी वो
जाना पहचाना लगता है
अनजानी सी डगर पे चलना
फ़िर अच्छा लगता है।

लुका छिपी का खेल निराला
वो तितली की पकड़ा पकडी
गुड्डे गुडियों का ब्याह रचाना
अब बचकाना लगता है।

सखियों के संग समय बिताना
अच्छा लगता है
पर अकेले में मुस्काना भी
अब अच्छा लगता है।

दिल को तन्हाई का आलम
अच्छा लगता है
तस्वीरों से भी बतियाना
अच्छा लगता है।

दिल की बात बताऊँ जिससे
साथी ऐसा नहीं मिला
मिल जाता जो साथी मन का
अच्छा लगता है।
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पूनम

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

एक लोरी


लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाडली
देर न कर निंदिया रानी
सोने चली मेरी लाडली।
लाडली…………………।

मां पापा की लाडली
बहना की तू सखी भली
भइया को प्यारी गुडिया
जैसी बहना तू मिली।
लाडली…………………॥

तू नाजुक फूलों जैसी
निश्छल तू दर्पण जैसी
तेरी मुस्कराहट पर
खिलती दिल की कली कली।
लाडली……………………।

तू शीतल सी चांदनी
जो छेड़े दिल की रागिनी
तेरी बोली लगती ऐसी
मिश्री की जैसी डली।
लाडली……………………॥

मां की उंगली पकड़ के घूमी
घर आँगन और गली गली
सब कुछ सूना सूना लगता
बिन तेरे मेरी लली।
लाडली…………………॥

पढ़ लिख कर तू नाम करे
जग तुझपे अभिमान करे
तेरी रोशनी से रोशन हो
धरती से अम्बर की गली।

लाडली…………………………।



मां का लाडला एक दिन कोई
तुझको लेने आयेगा
मां का आँचल सूना करके
उसके संग तू हो चली।
लाडली……………………।

तेरे जीवन में खुशियों की
बगिया हो महकी महकी
पर भूल न जाना तू कभी
मां के आंगन की गली।
लाडली ओ लाडली
सो जा मेरी लाड़ली।
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पूनम

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

इंतजार


कुछ इस तरह से आइना
पलट के देखती हूँ बार बार
शायद किसी तरह उनका
दीदार हो जाय।

बेरुखी हवाओं से
कहती हूँ बार बार
कुछ इस तरह बहो
की बहार आ जाय।

दूर तक नजरें उठा के
सोचती हूँ बार बार
की चिलमन गिरने से पहले
वो नजर आ जाय।

आंखों से बहे अश्कों को
पोंछती हूँ बार बार
शायद खुशी का
कोई पैगाम आ जाय।

क़दमों की आहट पर
भागती हूँ बार बार
आ गये हों शायद वो
अब इंतजार ख़त्म हो जाय।
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पूनम

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

एक याद


आज याद रही है माँ बहुत
आज मन रोने को है बहुत
लगता है जैसे बरसों बीत गये
मां का चेहरा देखने को तरस गये
ऐसा नही है की उनसे बात नहीं होती
हो जाती है बात फोन पर
मुलाकात नही होती
आज लग रहा है क्यों याद आता है
बेटियों को मायका
जबकि उनका ख़ुद का घर पुरा भरा हुआ
मां-बाबू सा ही प्यार मिलता ससुराल में
फ़िर भी कमी है अखरती थोड़ी बहुत
आज याद आ रही है माँ बहुत
वो डालडे घी में नमक लगा
मां के हाथ की बनी रोटियां
बेकार है उस स्वाद के आगे
छप्पन भोग की थालियाँ
आज याद आ रही है मां बहुत
लगा कर सर में तेल
गूंथती थी दो चोटियाँ
डांटती भी थी
जिसमें छुपा
प्यार होता था बहुत
आज याद आ रही है माँ बहुत
धीरे धीरे अब समझ में
आती है वो माँ की बातें
जो समझाती रहती हमको
लगती थी वो बेमानी बातें
मां की सीख से हमने भी
अब सीखा थोड़ा बहुत
आज याद आ रही है माँ बहुत ।
पूनम

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

शब्दों का खेल


शब्दों से क्या क्या खेल
खेलते हैं लोग
शब्दों को तोड़ मरोड़ कर
पेश करते हैं लोग।

दिल में रखते हैं जो जहर
शहद टपकाते हैं लोग
शब्दों के तीर चला चला कर
घायल करते हैं लोग।

शब्दों से ही शब्द के मायने
बदल देते हैं लोग
राजनीति हो या चौपाल गाँव की
शब्दों के ही जाल बुनते हैं लोग।

पाने के लिए कुछ भी
शब्दों का साथ लेते हैं लोग
मतलब पर आम शब्द को भी
खास बना देते हैं लोग ।

शब्द न मिलने पर कोई
बगले झांकते हैं लोग
क्यों की बिना शब्द के
गूंगे हो जाते हैं लोग।
००००००००००००००
पूनम

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

चांदनी रात


चंदा की छाँव तले
तारों की बारात चली
ओढ़ के रुपहली चूनर
टिमटिमाती रात चली।

पूरब से पश्चिम तक
उत्तर से दक्षिण तक
मानो आसमानी चादर से
सुनहली सी धूप खिली।

सतरंगे बादल भी
मद मस्त हो चले
रह रह के दामिनी भी
लुका छिपी खेल चली।

शीतल हवाओं ने जो
छेड़ी संगीत सुरीली
आस्मां के मंडप में
शहनाई सी गूँज चली।

भोर की बेला ने
मुस्कुरा के ली अंगडाई
ली विदाई तारों ने
जब सूरज की आंख खुली।
००००००००००
पूनम

बुधवार, 4 फ़रवरी 2009

समय


दरवाजे की झिरी से
देखने की कोशिश करती हूँ
आती पदचाप को
कानों से सुनने को आतुर
दिल की धड़कन द्वारा
उसको गिनने की कोशिश करती हूँ
हाथ बढ़ा कर
उसे पकड़ लेना चाहती हूँ
पर अपने को
पाती हूँ लाचार
क्योंकि वो समय है।
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पूनम