रविवार, 8 फ़रवरी 2009

चांदनी रात


चंदा की छाँव तले
तारों की बारात चली
ओढ़ के रुपहली चूनर
टिमटिमाती रात चली।

पूरब से पश्चिम तक
उत्तर से दक्षिण तक
मानो आसमानी चादर से
सुनहली सी धूप खिली।

सतरंगे बादल भी
मद मस्त हो चले
रह रह के दामिनी भी
लुका छिपी खेल चली।

शीतल हवाओं ने जो
छेड़ी संगीत सुरीली
आस्मां के मंडप में
शहनाई सी गूँज चली।

भोर की बेला ने
मुस्कुरा के ली अंगडाई
ली विदाई तारों ने
जब सूरज की आंख खुली।
००००००००००
पूनम

12 टिप्‍पणियां:

  1. भोर की बेला ने
    मुस्कुरा के ली अंगडाई
    ............ अंगडाती भोर जीवंत हो उठी,बहुत खूबसूरत भाव....

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  2. चंदा की छाँव तले
    तारों की बारात चली
    ओढ़ के रुपहली चूनर
    टिमटिमाती रात चली।

    ये बहुत सुंदर लगा पूनम।

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  3. आपने मनोभावों को सुन्दर शब्द दिये हैं

    ---
    चाँद, बादल और शाम

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  4. सतरंगे बादल भी
    मद मस्त हो चले
    रह रह के दामिनी भी
    लुका छिपी खेल चली।

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  5. चंदा ,तारे और टिमटिमाती रात का श्रृंगार अद्भुत /चारों दिशाओं में जहाँ तक द्रष्टि जाए -आसमान में रंगविरंगे बादल और बीच बीच में विजली का चमक जाना ((दामिनी दमक रही घन माहीं ,खल की प्रीत जथा थिर नाहीं ))सरसराती ठंडी हवा जैसे शहनाई की गूँज (( कहीं गूंजेगी शहनाई ,तो लेगा दर्द अंगडाई ,हजारों गम तेरे गम के वहाने याद आयेंगे ))काश भोर न होती सूरज की आँख न खुलती /
    एक विनम्र निवेदन घर के अंदर ,एकांत कमरे में शांत शोरगुल रहित वातावरण में इस कविता को पढ़ते हुए यदि वर्णित द्रश्य देखने की कोशिश की जाए तो व्यक्ति ध्यान की चरम अवस्था में पहुँच सकता है इसे ही मेडिटेशन कहा जाता है -यह झूंठी तारीफ वाली बात नहीं-स्वम करके देखा जासकता है -दावा है मेरा कुछ अवधि के लिए संसार की सुधि भूली जा सकती है ,सम्भव है कोशिश बार बार करना पड़े (अभ्यासेन तु कौन्तेय ..............)

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  6. पूनम जी ,
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ .प्रकृति को अपने बहुत ही नजदीक से देखा है ,उतनी ही खूबसूरती के साथ शब्दों में पिरोया है .बधाई

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  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, आज 26 अक्तूबर 2015 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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